रिश्तें!

रिश्तें!

Rishtey

क्यों हम रिश्तों को इतना मोल देते है,
उनको उम्मीदों और आशाओं में तोल देते है,
ऐ संसार के मोह में उलझे प्राणी, सीख़ उन बेज़ुबां जीवों से,
जो इन बंधनो से परेह होकर, अपने रिश्तों को अनमोल कर देते है।

-शिखा जैन