उड़ान!

उड़ान!

Udaan

ख्वाबों से दूर जाने लगा हूँ,
कर्म, तेरे और पास आने लगा हूँ,
ज़िन्दगी की ये दौड़ है उलझनों भरी,
पर मेहनत से होती अपनी आशाएँ खरी,
अब उन ख्वाबों को खोता देख,
कुछ यूँ मिल रही ख़ुशी, जो लगती सुकू भरी,
भर उड़ान, मिल रही उन सपनो को अपनी मंज़िल अभी।

– शिखा जैन