कश्मकश!

कश्मकश!

Kashmakash

मुस्कराहट में दबी वो झिझक न देखि किसीने,
सहमे हुए कदमो का हाल न देखा किसीने,
घबराते हुए जब वो हाथ चाय बनाने के लिए उठे,
तो वो लफ्ज़ , “में बना दू” ने मन की इस कश्मकश को सुलझा दिया ।

-शिखा जैन