देर आए दुरुस्त आए…..

देर आए दुरुस्त आए…..

Der Aye Durust Aye

कुछ यूँ आए, के वक़्त का भी भान ही न रहा,
जहा भरी महफ़िल में,
सारे फ़र्ज़ी मुस्कुराहट का मुखौटा ओढ़े थे,
वही कम्बख्त इन जज़्बातों ने,
लफ़्ज़ों का सहारा ले सब कुछ बतला दिया।

-शिखा जैन