
दर्द!
इस दर्द का भी क्या कहना,
कुछ यूँ शरीख हुआ ये इस ज़िन्दगी में,
के अपने आने पर दस्तक भी ना दी,
और ना ही अब रुक्सत की कोई जल्दी है उसे।
कैसा बेग़ैरत है ये,
दिल से सुकून तो छीन ही लिया है,
हर आहट पर अब अपनों से अलगाव सा मेहसूस करा दिया है,
बस,
यही इल्तिजा है अब इससे, के ये यही थम जाए,
और इस नासूर सी ज़िन्दगी में फिर से एक बार,
उत्साह से जीने का रंग भर जाए।
-शिखा जैन


