आइना!

आइना!

Aaina

उनसे होती है मुलाकात अक्सर सवेरे,
घर से निकलने के पहले लगते है उनके फेरे,
सवरने पर लगाते है वही चार चाँद सा,
और नक़ाब उतरने पर करवाते है रूबरू भी अपनी पहचान से,
ये आइना ही तो है जो बिना कोई झूट का पर्दा ओढ़े,
तुमसे तुम्हारी ही यथार्थता निडर होकर बोले!

-शिखा जैन