
वो दौर!
वो दौर कुछ ऐसा था,
क्या अपना क्या पराया, सब अपनों के जैसा था।
लोग ना मंडराते आस पास, सिर्फ तब,
जब तुम्हारे पास पैसा था।
तुम्हारी क़द्र परखी जाती जानकार,
के तुम्हारा मन उनके प्रति कैसा था।
कुछ पल साथ बिताया किसीके, पूछकर हाल चाल,
उम्र भर साथ निभाता तुम्हारा, सच्चा वो रिश्ता कुछ ऐसा था।
मोल था उन साफ़ भावनाओ का, सरलता ही थी पूंजी,
नातों से धनवान था तू, क्योंकि तोला ना किसीको जैसा तैसा था।
वो दौर ही कुछ ऐसा था,
वो दौर ही था कुछ ऐसा।
-शिखा जैन


